चाय की प्यालियों का खालीपन
क्षण भर को अखरा था.....
विचारों की तल्लीनता भंग
हुई थी....
"खोखला और खाली होना
क्या कोई अक्षम्य अपराध है???"
शुन्यता तो....
एकाकी की परिचायक है...
अंतर में जो घुटता है मेरे
शोर करता है....
तुम होती तो
मैं दिन-रात रो लेती..
और खाली हो जाती....
"रुदन की क्रिया भी..
तुम्हारे बिना अधूरी!!!!
क्यों-क्यों-क्यों अधूरी???"
भय-लहर मन के चट्टानों
को लहूलुहान किये है....
विचार घूम रहे है घुन-घुन
ऐंठ रहे है जिस्म को....
स्वीकृत करते ही....अनावृत हो जायेगा
एक फुंफकारता जेहरीला नाग....
"फिर क्या तुम लौट के आओगी..
मेरे पास????
शायद कभी नहीं"...
प्यालियों में चाय डाल दी है
अखरना कम हो गया है......
Wednesday, May 6, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)