Popular Posts

Tuesday, September 22, 2009

एक ख्याल

एक ख्याल....(ख्याल ही लिखा हर बार कुछ लिखा
काव्य नहीं होता....)

जब यहाँ कोई
बोलता नहीं है...
मेरे अन्दर,
एक शख्स...
यूँही बोलता रहता
है..उलझलूल
कुछ भी...
आजकल...(फुर्सत है न)
उन् बातों
को झाड़ पोंछ
के सामने
प्रस्तुत करता
है...
जिनकी अहमियत
(मेरे अनुसार)
वक्ती जज्बातों
का जमावाडा
था...
आये और
गए बातों
की फेहरिस्त
देना...
और याद दिलाना
उन् तन्हाई के
अफ़साने...
जिसमे गालिब
के ग़ज़लों
की दुनिया थी...
कुछ शामों
में....
तुम भी
आ जाती..
महफिल
का हल्का एहसास....

न उन् दिनों
की तमन्ना है अब
न चाहत...
दिनों
की अपनी
रसात्मकता है..

चलो न...
एक शाम..
गालिब को
फिर से
ढूंढ़ते हैं...
हम दोनों...
क्या ख्याल है????