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Monday, September 18, 2017

zakhm

मेरे दाएं पाँव की कनिष्ठ
ऊँगली में ज़ख्म था..
खून निकल के सूखने लगा था
नगण्य ऊँगली को अनदेखा कर
मैं सड़क किनारे
लंगड़ाते कुत्ते को देख रही थी...
उसके ज़ख्मो के ऊपर मख्खियां
भिनभिना रहीं थी...
लाल चकते सा ज़ख्म....
मख्खियों के लिए जैसे
गुलाबजामुन। ...
कुत्ता बीच बीच में
मुझे देख लेता...
कराह वाली आवाज़ में धीमे
धीमे भोंखता
मेरे ज़ख्म की पीड़ा
तेज़ हो रही थी...
मैं उठ के लंगड़ा के
चलने लगी...
मख्खियां मेरे ज़ख्म के इर्द-गीर्द
भिनभिनाने लगीं थी!!