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Saturday, July 11, 2009

तेरी आवाज़

तेरी आवाज़
उतरी थी
जिस्म में...
धीरे धीरे...

बटोर के
रख दिया
उसे
ताक पर
कांच की
शीशी में...

यूँही...
एक दिन...
तराजू ला
के तौला
तेरी आवाज़
को..
मात्र
१५० ग्राम..

हलकी फुल्की
आवाज़....
उडी पुरवाई
के साथ..
तरंग ही तरंग...
तेरी आवाज़
खिलखिलाई....
गुलमोहर के
५० फूल
गौद में
बिखर गए...

सुनो इस बार,
स्पंज में
भिगो के देना
आवाज़...
निचोड़ निचोड़
के..फैलाऊँगी
खुशबू...

याद है....
मेरी आवाज़
का गोला
कर...
उछाला था
तेरी ओर...
हाथ से
छुट कर
नीचे गिरा
धपाक
तुने कहा था..
"तेरी आवाज़
भारी है बहुत.."