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Tuesday, January 28, 2014

जीते-जीते न मर

सुनो.....
खिले नवीन
पुष्प में
दुर्गंध खोजनेवाली...
जुगनू की
खेती में...
अंधेरा बोनेवाली...
हंसते चहकते
टोली में
सिसकती रोनेवाली...
तू चाहे ना चाहे...
सुघनध फेलेगी...
रोशनी उघेगी
हँसी छाएगी...
नदी के छोर...
उल्टी धारा ना देख......
नभ की क्षितिज़ में
केवल टूटा तारा ना देख...
मौत की चाह में जीवन
असहाय ना कर।..
मरते मरते जी ले
जीते-जीते न मर।

Monday, January 27, 2014

एक ही वक़्त

पुरानी घड़ी की
रुकी हुई दोनो
सूइयां..
एक ही वक़्त पर
थी ठहरी..
या तो वक़्त वो...
सबसे अच्छा वक़्त
था...
या सबसे बुरा...
दूर-दूर एक
दिशा में
घूमती सूइयां...
किसी पल अचानक..
एक जगह जाती है
थम..
और फिर...
कुछ क्षणो पश्छात
शने: शने: अलगाव
आता है...
बीच की खाई..
कयी फीट गहरी
हो जाती है...
 नये सिरे से
नयी सूइयां मिलने
की करती है तैयारी...
या तो वो होता है...
सबसे अच्छा वक़्त
या सबसे बुरा वक़्त...


Saturday, January 25, 2014

कलम की जगह अब तलवार उठानी होगी...

स्त्री ओ स्त्री
तुझे रचनाओ मेअपनी सजाया है
सुंदर से...
तेरी अभिलाशाओं कोसबको बतलाया है
सुंदर से...
तेरे हक़ मेंबारबार उठायी है
आवाज़...
कोशिश कर केसर पे पहनाया है
ताज..
परंतु तू रही कमज़ोर..
आँचल तेरी फाड़ गया
वो भक्षक...
शांत स्तब्ध देखते रहे सब
बने रक्षक..
स्त्री ओ स्त्री
तूने क्यू नही उठाया
त्रिशूल
क्यू नही चटा दी उसे
धूल...
क्यू सिसकती है क्यू है
रोती...
निशाचर है, नही है तू
सोती...
स्त्री ओ स्त्री
मेरी भी रही है..
कहीं ना कहीं चूक
कविता के दायरे में
स्वयं ही गयी रुक...
तुझे अब एक और बात
बतानी होगी.
कलम की जगह अब तलवार
उठानी होगी.
कलम की जगह अब तलवार
उठानी  होगी....