सुनो.....
खिले नवीन
पुष्प में
दुर्गंध खोजनेवाली...
जुगनू की
खेती में...
अंधेरा बोनेवाली...
हंसते चहकते
टोली में
सिसकती रोनेवाली...
तू चाहे ना चाहे...
सुघनध फेलेगी...
रोशनी उघेगी
हँसी छाएगी...
नदी के छोर...
उल्टी धारा ना देख......
नभ की क्षितिज़ में
केवल टूटा तारा ना देख...
मौत की चाह में जीवन
असहाय ना कर।..
मरते मरते जी ले
जीते-जीते न मर।
खिले नवीन
पुष्प में
दुर्गंध खोजनेवाली...
जुगनू की
खेती में...
अंधेरा बोनेवाली...
हंसते चहकते
टोली में
सिसकती रोनेवाली...
तू चाहे ना चाहे...
सुघनध फेलेगी...
रोशनी उघेगी
हँसी छाएगी...
नदी के छोर...
उल्टी धारा ना देख......
नभ की क्षितिज़ में
केवल टूटा तारा ना देख...
मौत की चाह में जीवन
असहाय ना कर।..
मरते मरते जी ले
जीते-जीते न मर।
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