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Sunday, April 6, 2008

ghutan behad jaruri hai...

बेमक्सद से उठते धुएं में
खुद को क़ैद कर लूंगी
कुछ पल की ही सही
घुटन बेहद जरुरी है....
सांस लेना भी कैसी मजबूरी है....
सबूत देते रहना सबको
खुद के जिंदा होने की...|

जिंदा रहना भी एक मजबूरी है...
तेरे ख्वाहिशों को जिंदा रखने के लिए....
हर साल मेरा एक हिस्सा मर जाता है....
तेरे ख्वाहिशों के दिए जलाते रहने में....
सात साल से तिल तिल मर रही हूँ मैं...
फिर भी जिंदा हूँ,
सांस जो ले रही हूँ मैं....|

अब मैं खुद को
इस घुटन में क़ैद कर लूंगी....
खुद को भरोसा दिलाने के लिए
की मैं जी रही हूँ...|

2 comments:

Kavya!! said...

कुछ पल की ही सही
घुटन बेहद जरुरी है....
सांस लेना भी कैसी मजबूरी है....
some memorable lines which defies any confined expression ov thots!!
loved this work ov urs and one ov my personal favourites and really close to heart...fills me wid emotions every time i happen to read it...!!
amazing work really...

chetan said...

कुछ पल की ही सही
घुटन बेहद जरुरी है....
सांस लेना भी कैसी मजबूरी है....

hmmm..........umda zazbaat..

सात साल से तिल तिल मर रही हूँ मैं...
फिर भी जिंदा हूँ,
सांस जो ले रही हूँ मैं....|

umda expression..:)
man mein aise hi ek sawaal uth aaya hai kahin ye poem medical ki padai se related to nahi hai..?