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Saturday, April 26, 2008

वो दो रिश्ते

वो दो रिश्ते बड़े अनोखे थे

जब कभी मैं सुलगती थी
वाष्प बन उड़ जाते थे दोनों
फिर बरसते थे मुझे
शीतल करने.....

जब कभी मैं ठंड से कांपती थी
सूरज को बुला लाते थे
दुनिया के दुसरे कोने से
मुझे गर्मी प्रदान करने.
.
दो रिश्ते जो अपने थे,
अब सपने है
उफ़ कहाँ गए वो
मुझे तनहा कर......
वक़्त आगे बढ़ गया है
रिश्ते सिमट गए है,
ठहर गए है...
वहीं....मेरी पुरानी डायरी में,
उन मांगी हुई किताबों में,
कार्डों में,कानो की बालियों में,
उन अनगिनत तस्वीरों में,
मेरे कमरे के बिस्तर पर...
जहाँ घंटों हँसते थे
झगड़ते थे,कभी
रोते थे.....

दो रिश्ते अब भी उभरते है
ह्रदय में
टीस के रूप में.
जो उम्र भर रहेंगे
मेरे साथ
एक याद बन कर
एक आह बन कर........

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