सन्नाटा उतरा था जेहन में.....
चीख हृदयविदारक थी........
मौत को करीब से देखती
चीख......
"बचाओ.....कोई..ईईईईईइ"
चले गए थे दो चेहरे
अँधेरे की गुफा में..
स्तब्ध,गतिहीन
निस्पंद वहाँ...
दो जन थे...
मैं और एक लाश.....
आज....
चर्चा आम है.
उस रात का...
न्याय के
दावेदार अनेक है
संसद में हंगामा है
लोग बोले जा रहे है...
लाश अब जीवित है!!
मैं ही नहीं बोलती
कुछ भी..
क्यों?????
उस रात मैं भी
एक लाश बन गयी थी....
शायद.........
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