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Sunday, April 6, 2008

simatta pyaar..

देख ना,
मेरी शामें,रातें तेरे नाम वाली
कहीं सिमट कर खो रहीं हैं
स्मृति से ओझल होती हुई,
किसी भयावह खँडहर में
विलीन हो रही हैं|

ऐसा क्यूँ हैं जबकि,
प्रथम कशक,प्रथम चाह,
प्रथम स्पर्श का एहसास
तो अब तक जागृत है
नया नया सा है
प्रथम कुछ सालों के दिन रात
अनोखे थे,लचीले थे
फिर धीरे धीरे आकांक्षाएं लुप्त
होने लगीं,चाहत का रिसाव होने लगा
दीवारों के घेरे बढ़ते गए
हम दोनों दूर छटते गए
घुटन का धुआं पूरे वजूद
में समाने लगा...
प्यार की जिजीविषा समाप्त थी..!!

लेकिन तब भी,
चक्षुओं के अन्दर पटल पर तुम थे,
तन्हाई के सिसकती रातों में भी तुम थे,
यादों के हर शब्द में अंकित तुम थे,
हर और,हर जगह,हर वक़्त
प्यार विहीन मैं थी,
और मेरे संग अनुपस्तिथि में भी तुम थे|

उसके बाद,
मेरे अंतर में कौन चिल्ला उठा?
मरे हुए जज्बातों को मारने लगा...
मुझे शुन्य की ओर ले जाने लगा...
मैं तो अब शांत हूँ,
घुटन से आज़ाद हो गयी हूँ...!!

3 comments:

Kavya!! said...

undoubtedly the best creation ....!!
feeling ov lost love at its best...presented in wonderful way..really touching...
gud work...keep it up!

Ricky said...

waah waah!!
zabardast...
words nahi mil rahe describe karne ko...
koi baat nahi...next comment dictionary khol kar dalunga...[:P]

sajal said...

mujhe personally bahut zyaada pasand aayi ye.....sweet aur simple hai par behad touching hai....and u can feel the expressions....my di rocks!!