तेरी आवाज़
उतरी थी
जिस्म में...
धीरे धीरे...
बटोर के
रख दिया
उसे
ताक पर
कांच की
शीशी में...
यूँही...
एक दिन...
तराजू ला
के तौला
तेरी आवाज़
को..
मात्र
१५० ग्राम..
हलकी फुल्की
आवाज़....
उडी पुरवाई
के साथ..
तरंग ही तरंग...
तेरी आवाज़
खिलखिलाई....
गुलमोहर के
५० फूल
गौद में
बिखर गए...
सुनो इस बार,
स्पंज में
भिगो के देना
आवाज़...
निचोड़ निचोड़
के..फैलाऊँगी
खुशबू...
याद है....
मेरी आवाज़
का गोला
कर...
उछाला था
तेरी ओर...
हाथ से
छुट कर
नीचे गिरा
धपाक
तुने कहा था..
"तेरी आवाज़
भारी है बहुत.."
उतरी थी
जिस्म में...
धीरे धीरे...
बटोर के
रख दिया
उसे
ताक पर
कांच की
शीशी में...
यूँही...
एक दिन...
तराजू ला
के तौला
तेरी आवाज़
को..
मात्र
१५० ग्राम..
हलकी फुल्की
आवाज़....
उडी पुरवाई
के साथ..
तरंग ही तरंग...
तेरी आवाज़
खिलखिलाई....
गुलमोहर के
५० फूल
गौद में
बिखर गए...
सुनो इस बार,
स्पंज में
भिगो के देना
आवाज़...
निचोड़ निचोड़
के..फैलाऊँगी
खुशबू...
याद है....
मेरी आवाज़
का गोला
कर...
उछाला था
तेरी ओर...
हाथ से
छुट कर
नीचे गिरा
धपाक
तुने कहा था..
"तेरी आवाज़
भारी है बहुत.."
3 comments:
bahut sunder likha hai...badhaiyan..
aap kafi bdiya sochti hu iam impressed. achi soch or acha lekhan ka taalmel saaf najar aata hai tum me. tumne sahi kaha tumhe tumhari kavitao se hi jaana ja skta hai. frm mediatodayrohit.blogspot.com
aap dono ka bahut bahut dhanyawaad...
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