एक पहाड़ से दुसरे पहाड़ तक
जाती हिलती हुयी
ब्रिज पर मैं चलूँ
उस ब्रिज के रेलिंग पर
लटके हुए
सायद तुम मिलो...
एक पेड़ की शाख के
सारे झडे हुए पत्ते
जब वापिस आयें उस पर
एक फूल की टहनी पर
अटके हुए
सायद तुम मिलो
उन अजनबी रास्तों पर
जहां टिकती है रात
हटा कर सवेरा...
परछाइयां होती है अक्सर
लापता,उन् रास्तो पर..
भटके हुए..
सायद तुम मिलो...
सारे रिश्ते आज़ाद होकर
कहीं जब उद्द जाएँ
आसमान पर बादल से खेलूँ
मैं अकेली...और गिरूँ...
पर मेरी हाथ
पकडे हुए...
सायद तुम मिलो....
जाती हिलती हुयी
ब्रिज पर मैं चलूँ
उस ब्रिज के रेलिंग पर
लटके हुए
सायद तुम मिलो...
एक पेड़ की शाख के
सारे झडे हुए पत्ते
जब वापिस आयें उस पर
एक फूल की टहनी पर
अटके हुए
सायद तुम मिलो
उन अजनबी रास्तों पर
जहां टिकती है रात
हटा कर सवेरा...
परछाइयां होती है अक्सर
लापता,उन् रास्तो पर..
भटके हुए..
सायद तुम मिलो...
सारे रिश्ते आज़ाद होकर
कहीं जब उद्द जाएँ
आसमान पर बादल से खेलूँ
मैं अकेली...और गिरूँ...
पर मेरी हाथ
पकडे हुए...
सायद तुम मिलो....