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Sunday, March 2, 2014

फाल्गुन

पुलक पुलक नाचे बसंत
मेघ गर्जन में मोर
फाल्गुन लो अब आ गया
हो कर रंग से सराबोर..

धवल धवल से लोग पछतावे
रोये अंजुरी भर भर बैरागी
फाल्गुन की रंगिनिया देख
सोचे काहे दुनिया त्यागी?

गुलाबी गुलाबी सवेरे का फेरा
नीला,पिला,हरा रहा दोपहर
लाल शाम के गुलाली गाल
पूरा दिवस ही रहा मनहर

तरह तरह के पकवान सजे
पीकर मदमस्त हुए सब भंग
जात-पात प्रतिहिंसा को भूल
रंग की तरंग में बहे उमंग

स्मरण स्मरण कर प्रहलाद को
होलिकादहन हुयी पिछली वार
नन्दलाल ओ गोपियों की याद में
होरी खेले भारत बार बार

कोटि कोटि कृतज्ञ हो ऋतू से
निखरता रहे यूँ हर त्यौहार
इनके आवन जावन से सदेव
पल-पल पल्लवित रहे प्यार...