एक अदृश्य आग की दहक
है...
हवनकुंड है शायद अंत:स्थल में...
स्पर्श नहीं...
एहसास जता रहे हैं...
भीतर की अस्थिरता को...
क्या ये परमाणु के विघटित होने
की प्रक्रिया का आरम्भ है ?
पोर पोर से कण निकल
कर टकराते है देह से...
आत्मा करते है छलनी छलनी...
क्षण क्षण कई कण भेदते
रहते है...
मेरे बिखरे अस्तित्व को...
अल्फा, बीटा और गामा रे....
प्रभाव दिखाते रहेंगे...
विध्वंस होगा मेरे हर और...
गुज़रते वक़्त के साथ क्षय
होती रहूंगी मैं..
मैं एक रडिओधर्मी परिवर्तित व्यक्ति....
दिव्या...
है...
हवनकुंड है शायद अंत:स्थल में...
स्पर्श नहीं...
एहसास जता रहे हैं...
भीतर की अस्थिरता को...
क्या ये परमाणु के विघटित होने
की प्रक्रिया का आरम्भ है ?
पोर पोर से कण निकल
कर टकराते है देह से...
आत्मा करते है छलनी छलनी...
क्षण क्षण कई कण भेदते
रहते है...
मेरे बिखरे अस्तित्व को...
अल्फा, बीटा और गामा रे....
प्रभाव दिखाते रहेंगे...
विध्वंस होगा मेरे हर और...
गुज़रते वक़्त के साथ क्षय
होती रहूंगी मैं..
मैं एक रडिओधर्मी परिवर्तित व्यक्ति....
दिव्या...