Sunday, January 4, 2009
लाल चिडिया
"मेरा स्वागत यहीं था
काटे गए डोर
का अवशेष
अब भी बचा
है मुझमे...
यहाँ...
देखती थी
लाल चिडिया को
जब पंख फैलाती थी
उड़ नही पाती थी..
फड़फड़ाती थी..
बहुत देर तक...
चिड़ा उड़ता रहता था
अपने में मगन...
बिना उसपे ध्यान दिए....
अब तो..
पंख है उसके पास
ये भी उसे स्मरण नहीं.
मैं भी एक,
लाल चिड़िया...
तुम्हारे लिए
समर्पित होते
हुए भी...
अपने अंदर
झूलते रस्सी से
अटकी हूँ....
मन में कहीं
छोटी सी एक नदी
है...
उसमें रंग बिरंगी
मछलियाँ रहती
है.....
दिन में उन्हें दबा
देती हूँ..
पर रात मे...
मेरी स्वतंत्रता
में...
एक-एक मछली
उछलती है...
तैरती है...
ले जाती है मुझे
सफेद संगमरमर के
ताजमहल के पास
वहाँ अकेली होती
हूँ मैं...
दूर-दूर तक तुम
नहीं दिखते...
दिखती है वही
लाल चिड़िया
उड़ते हुए...
सवेरे मछलियाँ
छुप जाती हैं...
और मैं लाल चिड़िया
बैठी रह जाती हूँ
उदास..
चिर उदास..."
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12 comments:
अब तो..
पंख है उसके पास
ये भी उसे स्मरण नहीं.
सवेरे मछलियाँ
छुप जाती हैं...
और मैं लाल चिड़िया
बैठी रह जाती हूँ
उदास..
चिर उदास..."
वाह वाह वाह वाह क़्या बढिया कविता लिखी है, सुंदर बिंब, यूं तो सारी कविता अच्छी लेकिन कुछ पंक्तियां अच्छी लगी हैं जो मैने ऊपर लिखी है। जारी रहे।
jab lal chidiya ka arth samjhaya tab kavita padhke aur achchi lagi.....bahut achcha soch leti ho,shabdon ki leher si behti rehti hai tumhari abhivyakti.....as usual good work...well done really!
another memorable creation from U!!
dhanyawaad badal ji..aapke shabd prernasrot hai!!
thanx sweetu..love u
बहुत ही बढ़िया भाव दिये हैं आपने अपनी कविता को, अति सुन्दर
---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
bahut bahut dhanyawaad..vinayji...
शानदार अभिव्यक्ति
बहुत ही सुंदर और खुबसूरत रचना है आपकी. नव वर्ष की शुभकामनायें. नया साल आपको शुभ हो, मंगलमय हो.
i donno much about Hindi poetry... but these are gorgeous... really nice poem......
gorgeous bcoz a doctor poet's poem will always be gorgeous...keep it up....
Acchi kavita hai.....
awesome!!!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!आप
का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
Kya baat hai!!!
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