दाग थे विश्वास पर
विश्वास को ओढ़े
आती जाती रहती
हूँ...
जनवरी के महीने में..
जिस दिन हलकी धुप
बिखरी थी..
विश्वास को धुप लगाने
छत पर गयी थी...
तभी देखा था..
कैसे अजीबो-गरीब
दाग थे विश्वास पर..
ज़िन्दगी व्यस्त थी..
दाग के लगने का.
आबश हुआ नहीं..
विचित्र सत्य था...
गुनगुने पानी में
सर्फ़ एक्सेल डाल के..
विश्वास को भिगो दिया...
"दाग अच्छे हैं"...
पर? विश्वास पर दाग
कहाँ अच्छे हैं???
धो के,निचोड़ के..
सुखाने गयी...
अजीब सा कुछ दिखा...
नए दाग धुल गए थे..
पर पुराने दाग(जो नए दाग
के नीचे थे)
उभर आये थे..
विश्वास दीन-हीन सा..
तार-तार था...
दया आई-विश्वास पर या
खुद पर-पता नहीं...
उसे समेटा,ओढा..
और ज़िन्दगी फिर से..
व्यस्त हो गयी
Friday, March 25, 2011
Sunday, March 20, 2011
नास्त्रेदमस
शब्द शब्द अँधेरा
कुचला हुआ सच...
कहीं मेहेकता हुआ..
डायरी का एक पन्ना...
एक पन्ने पर लिखा
सत्य
जिसे रौंध के
कभी स्वयं हंसी
थी...
अब वही..
शब्द शब्द
अंधकार में
नाच रहा है
तांडव नृत्य....
रिश्तों के दम
तोड़ने की भविष्यवाणी
करने वाली डायरी
क्या तुझे
नास्त्रेदमस लिखूं...
कुचला हुआ सच...
कहीं मेहेकता हुआ..
डायरी का एक पन्ना...
एक पन्ने पर लिखा
सत्य
जिसे रौंध के
कभी स्वयं हंसी
थी...
अब वही..
शब्द शब्द
अंधकार में
नाच रहा है
तांडव नृत्य....
रिश्तों के दम
तोड़ने की भविष्यवाणी
करने वाली डायरी
क्या तुझे
नास्त्रेदमस लिखूं...
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