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Friday, March 25, 2011

दाग थे विश्वास पर...

दाग थे विश्वास पर
विश्वास को ओढ़े
आती जाती रहती
हूँ...
जनवरी के महीने में..
जिस दिन हलकी धुप
बिखरी थी..
विश्वास को धुप लगाने
छत पर गयी थी...
तभी देखा था..
कैसे अजीबो-गरीब
दाग थे विश्वास पर..

ज़िन्दगी व्यस्त थी..
दाग के लगने का.
आबश हुआ नहीं..
विचित्र सत्य था...
गुनगुने पानी में
सर्फ़ एक्सेल डाल के..
विश्वास को भिगो दिया...
"दाग अच्छे हैं"...
पर? विश्वास पर दाग
कहाँ अच्छे हैं???

धो के,निचोड़ के..
सुखाने गयी...

अजीब सा कुछ दिखा...
नए दाग धुल गए थे..
पर पुराने दाग(जो नए दाग
के नीचे थे)
उभर आये थे..
विश्वास दीन-हीन सा..
तार-तार था...
दया आई-विश्वास पर या
खुद पर-पता नहीं...
उसे समेटा,ओढा..
और ज़िन्दगी फिर से..
व्यस्त हो गयी

4 comments:

Ravi Shankar said...

Hmmm.......... kuchh daag wakai achchhe nahi hote hain,buddy !

Achchha laga muddat baad aapko padhna !

divya said...

thanx ravi....
TV wale sare daag achche hote h..:)

Unknown said...

deep feelings ke saath bahut behtreen tareeke se likha hai....accha laga padh ke

divya said...

thnx chetanji kavita oadhne awem cmnt k liye thnx