Popular Posts

Sunday, December 21, 2008

akelapan..

ये मार्ग सीधा
उस पेड़ के निकट
जाता है..
पेड़ के तीन और
मोटे-पतले
लंबे-नाटे
मकान है. ...
वह पेड़
अकेला खड़ा है
मकानों के मध्य....
उस पेड़ के पत्ते
हरे नहीं...
लाल है..
सिंदूरी लाल..
उन पर सुनहरे फूल
खिले हुए हैं...
प्रतीत होता है .
जैसे....
आग का जलता गोला
झूल रहा है..
आकाश और ज़मीन
के बीच में..
पेड़ दर्शनीय है..
अनोखा है...
इस पर बरसों से
शोध
हो रहे हैं..
पेड़ का रहस्य...
रहस्य ही है
अब तक......
आज मैं उस
पेड़ के सामने
खड़ी थी....
देखा मैंने...
मेरे तन पे
लाल पत्तियाँ
उग आयीं हैं..
सुनहरे पुष्प
प्रस्फुटित हो
रहे हैं..
इस क्षण
पेड़ और मैं,
मैं और पेड़..
एक में हो गए हैं..
व्यथा ने व्यथा को
अंगीकार कर लिया है..
अकेलापन उसका और
मेरा कुछ क्षण
को ही सही..
सिमट तो गया है...

12 comments:

Sajal Ehsaas said...

hindi font mein hi likhiye...jadooyi kavita ka jadooyi asar :)

divya said...

thanx sajal!!

Sajal Ehsaas said...

blog ke make over par badhayee....mast ho gaya hai ekdum :)

Unknown said...

aur baaki kavitao ka toh utna pata nahi... par ye bahut sahi hai...1 of d best in '08..... keep writing dr. ...

divya said...

sajal tumhe kaise pata chala make over ka[:O]..but thanx thanx

divya said...

thanx sudhir...padhne aur sarahne ke liye...[:)]

Sajal Ehsaas said...

hasy-vyang mein ek koshish:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_5104.html

Vinay said...

आप बहुत बेहतरीन कविता करती हैं

divya said...

dhanyawaad vinay ji

Kavya!! said...

bahut achchi abhivyakti hai...a deep poem that says a lot....use of metaphor is too good...you are superb and immensely talented,no doubt!! :-)

ni:shabd said...

behtarin. keep it up.
www.ni-shabd.blogspot.com
welcome.

Unknown said...

Nice expression....and very imaginative....as always!!!