ये मार्ग सीधा
उस पेड़ के निकट
जाता है..
पेड़ के तीन और
मोटे-पतले
लंबे-नाटे
मकान है. ...
वह पेड़
अकेला खड़ा है
मकानों के मध्य....
उस पेड़ के पत्ते
हरे नहीं...
लाल है..
सिंदूरी लाल..
उन पर सुनहरे फूल
खिले हुए हैं...
प्रतीत होता है .
जैसे....
आग का जलता गोला
झूल रहा है..
आकाश और ज़मीन
के बीच में..
पेड़ दर्शनीय है..
अनोखा है...
इस पर बरसों से
शोध
हो रहे हैं..
पेड़ का रहस्य...
रहस्य ही है
अब तक......
आज मैं उस
पेड़ के सामने
खड़ी थी....
देखा मैंने...
मेरे तन पे
लाल पत्तियाँ
उग आयीं हैं..
सुनहरे पुष्प
प्रस्फुटित हो
रहे हैं..
इस क्षण
पेड़ और मैं,
मैं और पेड़..
एक में हो गए हैं..
व्यथा ने व्यथा को
अंगीकार कर लिया है..
अकेलापन उसका और
मेरा कुछ क्षण
को ही सही..
सिमट तो गया है...
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12 comments:
hindi font mein hi likhiye...jadooyi kavita ka jadooyi asar :)
thanx sajal!!
blog ke make over par badhayee....mast ho gaya hai ekdum :)
aur baaki kavitao ka toh utna pata nahi... par ye bahut sahi hai...1 of d best in '08..... keep writing dr. ...
sajal tumhe kaise pata chala make over ka[:O]..but thanx thanx
thanx sudhir...padhne aur sarahne ke liye...[:)]
hasy-vyang mein ek koshish:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_5104.html
आप बहुत बेहतरीन कविता करती हैं
dhanyawaad vinay ji
bahut achchi abhivyakti hai...a deep poem that says a lot....use of metaphor is too good...you are superb and immensely talented,no doubt!! :-)
behtarin. keep it up.
www.ni-shabd.blogspot.com
welcome.
Nice expression....and very imaginative....as always!!!
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