कविता का आधार...
अक्सर..
या कभी कभी..
आस पास
लिपटा हुआ भी...
प्यार ही होता
है...
उदास आंखें...
सहारा देती बाहें...
शक्सियत...
जुदाई मिलन...
खुद में एक
कविता है...
मैं आजतक
इन् सब के
बगैर..
जो भी लिखती
आई हूँ..
क्या वो
कविता
नहीं हैं?????
Sunday, October 9, 2011
Monday, October 3, 2011
कच्चा वक़्त
कच्चा वक़्त -....
एक एक
काले अक्षरों को
नीला पीला
हरा से
रंगे हुए है...
अंधेरो में
खोये हैं अक्षर...
अक्षर ठन्डे
पानी में....
दूंदते हैं..
गर्माहट..
धुंआ होता हैं..
छुपा हुआ..
कच्चा वक़्त..
कालेपन से,
ठंडेपन से...
स्वयं को बचा
लेता ही है...कैसे भी...
(संभव सा...)
पका वक़्त-
सफ़ेद गरम
नहाया हुआ सा
अपने कृत्रिमता
से निर्लिप्त...
कितने
मुखोटो को
चिपकाये
आनंदित है...
(असंभव सा.....)
एक एक
काले अक्षरों को
नीला पीला
हरा से
रंगे हुए है...
अंधेरो में
खोये हैं अक्षर...
अक्षर ठन्डे
पानी में....
दूंदते हैं..
गर्माहट..
धुंआ होता हैं..
छुपा हुआ..
कच्चा वक़्त..
कालेपन से,
ठंडेपन से...
स्वयं को बचा
लेता ही है...कैसे भी...
(संभव सा...)
पका वक़्त-
सफ़ेद गरम
नहाया हुआ सा
अपने कृत्रिमता
से निर्लिप्त...
कितने
मुखोटो को
चिपकाये
आनंदित है...
(असंभव सा.....)
Friday, March 25, 2011
दाग थे विश्वास पर...
दाग थे विश्वास पर
विश्वास को ओढ़े
आती जाती रहती
हूँ...
जनवरी के महीने में..
जिस दिन हलकी धुप
बिखरी थी..
विश्वास को धुप लगाने
छत पर गयी थी...
तभी देखा था..
कैसे अजीबो-गरीब
दाग थे विश्वास पर..
ज़िन्दगी व्यस्त थी..
दाग के लगने का.
आबश हुआ नहीं..
विचित्र सत्य था...
गुनगुने पानी में
सर्फ़ एक्सेल डाल के..
विश्वास को भिगो दिया...
"दाग अच्छे हैं"...
पर? विश्वास पर दाग
कहाँ अच्छे हैं???
धो के,निचोड़ के..
सुखाने गयी...
अजीब सा कुछ दिखा...
नए दाग धुल गए थे..
पर पुराने दाग(जो नए दाग
के नीचे थे)
उभर आये थे..
विश्वास दीन-हीन सा..
तार-तार था...
दया आई-विश्वास पर या
खुद पर-पता नहीं...
उसे समेटा,ओढा..
और ज़िन्दगी फिर से..
व्यस्त हो गयी
विश्वास को ओढ़े
आती जाती रहती
हूँ...
जनवरी के महीने में..
जिस दिन हलकी धुप
बिखरी थी..
विश्वास को धुप लगाने
छत पर गयी थी...
तभी देखा था..
कैसे अजीबो-गरीब
दाग थे विश्वास पर..
ज़िन्दगी व्यस्त थी..
दाग के लगने का.
आबश हुआ नहीं..
विचित्र सत्य था...
गुनगुने पानी में
सर्फ़ एक्सेल डाल के..
विश्वास को भिगो दिया...
"दाग अच्छे हैं"...
पर? विश्वास पर दाग
कहाँ अच्छे हैं???
धो के,निचोड़ के..
सुखाने गयी...
अजीब सा कुछ दिखा...
नए दाग धुल गए थे..
पर पुराने दाग(जो नए दाग
के नीचे थे)
उभर आये थे..
विश्वास दीन-हीन सा..
तार-तार था...
दया आई-विश्वास पर या
खुद पर-पता नहीं...
उसे समेटा,ओढा..
और ज़िन्दगी फिर से..
व्यस्त हो गयी
Sunday, March 20, 2011
नास्त्रेदमस
शब्द शब्द अँधेरा
कुचला हुआ सच...
कहीं मेहेकता हुआ..
डायरी का एक पन्ना...
एक पन्ने पर लिखा
सत्य
जिसे रौंध के
कभी स्वयं हंसी
थी...
अब वही..
शब्द शब्द
अंधकार में
नाच रहा है
तांडव नृत्य....
रिश्तों के दम
तोड़ने की भविष्यवाणी
करने वाली डायरी
क्या तुझे
नास्त्रेदमस लिखूं...
कुचला हुआ सच...
कहीं मेहेकता हुआ..
डायरी का एक पन्ना...
एक पन्ने पर लिखा
सत्य
जिसे रौंध के
कभी स्वयं हंसी
थी...
अब वही..
शब्द शब्द
अंधकार में
नाच रहा है
तांडव नृत्य....
रिश्तों के दम
तोड़ने की भविष्यवाणी
करने वाली डायरी
क्या तुझे
नास्त्रेदमस लिखूं...
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