आईने से बल्ब की रोशनी फेंकी मैने चाँद पर..
झट से कलाइयाँ रख दी चाँद ने आँखों पर
चोंखा हुआ नशीला स्वर गूंजा "क्यों जगाया?? "
चंचलता पर तनिक लज्जित मैं रही शांत.
नर्म ठंडी आवाज़..अंगड़ायों के साथ आई....
"6-7 नींद की गोलियाँ..बादल के टुकड़े को निचोड़ के ली थी गटक.."
अचकचाकर घबराकर उसे खोने के भय से पूछा "क्यों"??
क्षितिज की और ताकती थकी चाँद की आँखें..
गहरे मौन के पश्चात काँपते रोए शब्द कानो से मेरे टकराए...
"साँस अटकी हैं मेरी रूह में.
जीते जीते ऊब गया हूँ.
एक बार मर के पुनःजीवित होना चाहता हूँ..
एक नये जीवन-रस के अनुभव के लिए"
हम दोनो के मध्य तभी घना बादल आ कर गया अटक...
उस वक़्त...भारी मन से.
मैने बल्ब भुझा दिया ..
आईने को दूर बहुत दूर फेंक दिया....
No comments:
Post a Comment