chaand se tumhara mera rishta ajeeb hai
wo mera dost hai,tumhara raqeeb hai
likhna ibadat hai,sajde me hoon main
mere khuda tu meer hai ya ghalib hai
darakht ki shaakhen pukarti hai tujhe
unki lakeeron se jooda tera naseeb hai
dard dete ho to,ambaar laga do tum
koi na kahe tera humdum gareeb hai
shab girati shabnam,ashq bahati main
shab-e-tanhaayi me shab meri habeeb hai
bichad ke tujhse har pal roya kiye hum
ab jana tu mere dil ke kitna kareeb hai
kisse poochogi ilaaj apne marj ka tum?
sab kahenge "ruby"to khud tabeeb hai
Friday, May 23, 2008
Wednesday, May 21, 2008
spasth hai khamoshi...
naya andaaz
dekha hai tumhara...
kuchh kehte hi nahi...
main kehne ki koshish
karti hoon...
kuchh sunte bhi nahi..
khamoshi bahut kuchh
keh jaati hai...spasht..
sun liya hai khamoshi
ko...kal bhi,aaj bhi...
saare zazbaat bikhar
chuke hai mere...
par aatmasamaan
nahi bikhra sakti main...
mera aatmasamman...
sunna chahta hai
'aakhri alvida'...
tumhare labon se...
ye mera haq bhi hai......!!
dekha hai tumhara...
kuchh kehte hi nahi...
main kehne ki koshish
karti hoon...
kuchh sunte bhi nahi..
khamoshi bahut kuchh
keh jaati hai...spasht..
sun liya hai khamoshi
ko...kal bhi,aaj bhi...
saare zazbaat bikhar
chuke hai mere...
par aatmasamaan
nahi bikhra sakti main...
mera aatmasamman...
sunna chahta hai
'aakhri alvida'...
tumhare labon se...
ye mera haq bhi hai......!!
Sunday, May 4, 2008
ek duniya...
ye kavita aise hi likh di..bina kuchh soche....
pata nahi ye kavita hai bhi ki nahi....[:)]
ek duniya hai...
jidhar mil k rehte
hain...
aaftaab aur maahtaab...
dono me tanti nahi..
koi tankeed nahi...
aasmaan par kabza karne
ko shab aur din nahi kiye..
bahut se ped hai...
gulmohar ke....dehekte se..
unme se ek ped pe..
jhula daala hai maine...
khud me hi khoyi jhulti
hoon....
kisi ka bhi intzaar nahi...
kisi ka bhi....
meri duniya hai sirf meri.
Friday, May 2, 2008
मेरे सोये सारे सूर्यमुखी
पुनरागमन उसी दिवस का...
एक प्रतीक्षा...
आओगी तुम..
सूर्य सी..
मेरे सोये सारे सूर्यमुखी
खिल उठेंगे..
मुख तुम्हारी ओर करेंगे...
स्नेह किरण की धार..
पड़ेगी...
आह!आकुलता,व्याकुलता
उस धार की..
रोम-रोम से प्यासे..
जब से तुम गयी..
स्वपन,स्वपन,स्वपन...
औचित्य नहीं...
सदेव रहेगा अधूरा...
तृण का अट्टहास...
काँप जाती हूँ..
क्षण भंगुर आशा को
मिटाती हूँ..
तस्वीर से झांकती
तुम्हारी आखें..
निरीह सी
देखती है मुझे..
दो बूँद अश्रु के..
बह जाते है..
मेरे सूर्यमुखी
सोये ही रहेंगे..
सदा....
एक प्रतीक्षा...
आओगी तुम..
सूर्य सी..
मेरे सोये सारे सूर्यमुखी
खिल उठेंगे..
मुख तुम्हारी ओर करेंगे...
स्नेह किरण की धार..
पड़ेगी...
आह!आकुलता,व्याकुलता
उस धार की..
रोम-रोम से प्यासे..
जब से तुम गयी..
स्वपन,स्वपन,स्वपन...
औचित्य नहीं...
सदेव रहेगा अधूरा...
तृण का अट्टहास...
काँप जाती हूँ..
क्षण भंगुर आशा को
मिटाती हूँ..
तस्वीर से झांकती
तुम्हारी आखें..
निरीह सी
देखती है मुझे..
दो बूँद अश्रु के..
बह जाते है..
मेरे सूर्यमुखी
सोये ही रहेंगे..
सदा....
मैं चुप ही थी...
मैं चुप ही थी...
तब भी..
जब प्रेम-निवेदन तुमने
किया...
मैं मुस्कुराई थी...
इक शाम कभी कहा था
तुम्ही ने....
"प्यार रूह में बसता है..
जिस्मो से आज़ाद है..
हम कभी नहीं मिल सकते.."
मैं मुस्कुरायी थी....
आज तुमने कहा....
"मैं किसी और का
होने जा रहा हूँ.."
मैं अब भी मुस्कुरा
रही हूँ....
तब भी..
जब प्रेम-निवेदन तुमने
किया...
मैं मुस्कुराई थी...
इक शाम कभी कहा था
तुम्ही ने....
"प्यार रूह में बसता है..
जिस्मो से आज़ाद है..
हम कभी नहीं मिल सकते.."
मैं मुस्कुरायी थी....
आज तुमने कहा....
"मैं किसी और का
होने जा रहा हूँ.."
मैं अब भी मुस्कुरा
रही हूँ....
मेरा बचपन
कुछ दिन पहले तक
वो बच्ची थी....
खिलखिलाती,खेलती..
दौड़ती,मचलती,
छोटे भाई बहनो को छेड़ती...
अचानक एक दिन...
वो बड़ी हो गयी...
घर में सबसे बड़ी...
पंद्रह वर्ष की उम्र में..
छोटे भाई बहनो की 'माँ'
नाम मिला उसे..
दीदी माँ..
परिपक्व, हर कार्य में दक्ष,
बिना उसकी अनुमति
पत्ता भी ना हिलता
घर में...
शने:शने: चेहरा कटोर
होता गया उसका...
आवाज़ में तल्खी आ गयी..
व्यवहार में कड़वापन...
भयभीत हो सब पूछते...
"क्या चाहिए तुम्हे?"..
चीख के बस कहती...
"मेरा बचपन,वैसा का वैसा"..
सब चुप रहते...अनुतरित...!!
वो बच्ची थी....
खिलखिलाती,खेलती..
दौड़ती,मचलती,
छोटे भाई बहनो को छेड़ती...
अचानक एक दिन...
वो बड़ी हो गयी...
घर में सबसे बड़ी...
पंद्रह वर्ष की उम्र में..
छोटे भाई बहनो की 'माँ'
नाम मिला उसे..
दीदी माँ..
परिपक्व, हर कार्य में दक्ष,
बिना उसकी अनुमति
पत्ता भी ना हिलता
घर में...
शने:शने: चेहरा कटोर
होता गया उसका...
आवाज़ में तल्खी आ गयी..
व्यवहार में कड़वापन...
भयभीत हो सब पूछते...
"क्या चाहिए तुम्हे?"..
चीख के बस कहती...
"मेरा बचपन,वैसा का वैसा"..
सब चुप रहते...अनुतरित...!!
daayre me
apne apne daayre me log ade mile
jo mile hume saahil pe khade mile...
nahi nikle tum toofan me jujhne ko
chupe sehme se ghar me pade mile
kaash koi awaaz de,sunaye hum bhi
raat kitni kaali aur din kitne kade mile
duboya pani me tha kal yaadon ko
aaj dekha wahi fir se ubhare mile
jo mile hume saahil pe khade mile...
nahi nikle tum toofan me jujhne ko
chupe sehme se ghar me pade mile
kaash koi awaaz de,sunaye hum bhi
raat kitni kaali aur din kitne kade mile
duboya pani me tha kal yaadon ko
aaj dekha wahi fir se ubhare mile
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