मैं चुप ही थी...
तब भी..
जब प्रेम-निवेदन तुमने
किया...
मैं मुस्कुराई थी...
इक शाम कभी कहा था
तुम्ही ने....
"प्यार रूह में बसता है..
जिस्मो से आज़ाद है..
हम कभी नहीं मिल सकते.."
मैं मुस्कुरायी थी....
आज तुमने कहा....
"मैं किसी और का
होने जा रहा हूँ.."
मैं अब भी मुस्कुरा
रही हूँ....
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