कुछ दिन पहले तक
वो बच्ची थी....
खिलखिलाती,खेलती..
दौड़ती,मचलती,
छोटे भाई बहनो को छेड़ती...
अचानक एक दिन...
वो बड़ी हो गयी...
घर में सबसे बड़ी...
पंद्रह वर्ष की उम्र में..
छोटे भाई बहनो की 'माँ'
नाम मिला उसे..
दीदी माँ..
परिपक्व, हर कार्य में दक्ष,
बिना उसकी अनुमति
पत्ता भी ना हिलता
घर में...
शने:शने: चेहरा कटोर
होता गया उसका...
आवाज़ में तल्खी आ गयी..
व्यवहार में कड़वापन...
भयभीत हो सब पूछते...
"क्या चाहिए तुम्हे?"..
चीख के बस कहती...
"मेरा बचपन,वैसा का वैसा"..
सब चुप रहते...अनुतरित...!!
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