पुनरागमन उसी दिवस का...
एक प्रतीक्षा...
आओगी तुम..
सूर्य सी..
मेरे सोये सारे सूर्यमुखी
खिल उठेंगे..
मुख तुम्हारी ओर करेंगे...
स्नेह किरण की धार..
पड़ेगी...
आह!आकुलता,व्याकुलता
उस धार की..
रोम-रोम से प्यासे..
जब से तुम गयी..
स्वपन,स्वपन,स्वपन...
औचित्य नहीं...
सदेव रहेगा अधूरा...
तृण का अट्टहास...
काँप जाती हूँ..
क्षण भंगुर आशा को
मिटाती हूँ..
तस्वीर से झांकती
तुम्हारी आखें..
निरीह सी
देखती है मुझे..
दो बूँद अश्रु के..
बह जाते है..
मेरे सूर्यमुखी
सोये ही रहेंगे..
सदा....
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1 comment:
अच्छी कविता।
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